अल्फाज़

मेरे सिरहाने एक किताब पड़ी है
उसकी कहानी कुछ ऐसी मुडी है
अलग सिमटे किस्सों का कारवां हो
किसी से मुलाकात यूँही ख्वामखाँ हो

बहुत चाहता हूँ के बस ख़त्म कर दूँ
ये स्याह चित्रकारी जो अधूरी खड़ी है
सुलझेगी कैसे मगर सोचता हूँ
के अब तक पहेली जो मैंने गढ़ी है

वो कहते हैं हमसे
के हम लिख पाएँगे
आंखों से कही है जो दास्ताँ
वो लफ्ज़ क्या पकड़ पाएँगे
ये रूठना मनाना जो अब तक लिखा है
हसीं मंज़रों से कागज़ जो भर रखा है
इस मोहब्बत-ऐ नीवल* के क्या मायने हों
अगर दिल में उनके दबी आखरी कड़ी है |

*novel?

Comments

vishal said…
Hey..it wud be infinitely preferable if you transliterate in eglisss :)
leave devnagri for the dev log .poem is cool though.

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